लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

अध्याय - 6

हिन्दी आलोचना का ऐतिहासिक विकास क्रम

प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

ऐतिहासिक आलोचना किसी भी कृति का अध्ययन उस सामाजिक राजनीतिक संदर्भ में करने का आग्रही है जिस संदर्भ में वह रचित हो। इस आलोचना पद्धति का आलंब आलोचक तब ग्रहण करता है जब वह भूतकाल की किसी कृति का अध्ययन करता है। मुझे लगता है कि किसी भी प्राचीन कृति के अध्ययन का यह तरीका सबसे बेहतर है। भूतकाल की किसी साहित्यिक रचना की आलोचना करते समय इतिहास का ज्ञान जरूरी होता है। इतिहास का संबंध किसी व्यक्ति विशेष से, युग से, किसी देश से उसकी राजनैतिक, सामाजिक सांस्कृतिक तथा धार्मिक तथा साहित्यिक परिस्थितियों से होता है। आलोचना करते समय इन सब बातों की जानकारी होना जरूरी है। इसी जानकारी के आधार पर ही अतीत की साहित्यिक रचना का मूल्याँकन होता है। जब कोई आलोचक ऐतिहासिक साहित्यिक रचना की सही आलोचना करेगा तो इतिहास तथा साहित्य दोनों दृष्टियों से उसके महत्व को स्पष्ट करेगा, तो ही ऐतिहासिक आलोचना लाभकारी होगी। अतः रचना का मूल्यांकन उसी युग के संदर्भ में करना ही ऐतिहासिक आलोचना कहलाती है। इसी संदर्भ में विन्चेस्टर ने कहा है -

We are constantly liable to misjudge individual author in the most unfortunate way unless we consider their relations to the age, the opinons moral and political that were current then, the standards of judgement that prevailed, the sentiments of the age with which they were in accord or against which perhaps, they were in passionate revolt. यह उक्ति साहित्य प्रेमियों में अत्यधिक प्रचलित है कि साहित्य समाज का दर्पण है। इस उक्ति में एक बहुत बड़ा सत्य छिपा हुआ है। हम किसी एक युग, देश अथवा जाति तथा साहित्य के विभिन्न कलाकारों को ले सकते हैं। इनमें पर्याप्त विषमता होते हुए भी हमें एक सौम्य दिखाई देगा। यह साम्य सिद्ध करता है कि प्रत्येक युग की चेतना का एक निश्चित रूप होता है और साहित्यकार उससे मुक्त नहीं हो सकता। विभिन्न देशो, युगों और जातियों के अध्ययन में साहित्य और उसकी इन प्रवृत्तियों को स्पष्ट कर दिया गया है। यही साहित्य का मूलाधार है। साहित्य और युग का सही संबंध ऐतिहासिक आलोचना पद्धति का आधार है। प्रत्येक भाषा के प्रौढ़ साहित्य में यह आलोचना पद्धति देखी जा सकती है। अंग्रेजी में सैन्ट बेव और टैन ने इस पद्धति का प्रवर्तन किया। टैन जाति ( Race), परिवृत्ति (Surrondings), युग (Chab) को साहित्य की प्रधान प्रेरणा शक्ति मानते हैं। इनका पूरे साहित्य पर पूरा अधिकार होता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी एक विशेष समुदाय और जाति का अंग होता है। अतः उस जाति की विचारधारा और रहन-सहन उसे अवश्य प्रभावित करती है। सच्चाई तो यह है कि वह उस जाति विशेष का प्रतिनिधित्व करता है। अतः यह स्पष्ट है कि उस व्यक्ति द्वारा रचित साहित्य उसकी जातीय सभ्यता और संस्कृति का स्पष्ट प्रतिबिम्ब है। उसके साहित्य में भौगोलिक, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का अन्तर्भाव रहता है। ये सभी उसके साहित्य को प्रभावित करते हैं। इन्हीं तत्त्वों की भिन्नता के कारण एक देश का साहित्य दूसरे देश के साहित्य से अलग होता है। भारत और यूरोप के साहित्य का भौगोलिक अन्तर भिन्न जाति और भिन्न परिवृत्ति के कारण है। उपर्युक्त विवेचन से ऐतिहासिक आलोचना पद्धति का बहुत कुछ स्पष्टीकरण हो जाता है।

संसार में प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है। युग बदलता है, उसकी परिस्थितियाँ बदल जाती हैं, लोग बदल जाते हैं और लोगों के रहन-सहन और खान-पान में परिवर्तन आ जाता है, क्योंकि परिवर्तन ही जीवन का लक्षण है। जीवन के समान प्रत्येक वस्तु भी चिर-परिवर्तनशी है। इसी को टैन युग प्रवर्तन कहते हैं। उनका कहना है कि युग चेतना चिर विकासशील है। फिर भी वह अपने साथ पूर्व युग के संस्कारों को लेकर आगे बढ़ती है। इसका मतलब यह हुआ कि युग परिवर्तन के कारण साहित्य में परिवर्तन होता है। एक युग का महाकाव्य या नाटक दूसरेय उग के महाकाव्य या नाटक से भिन्न होता है। भले ही रत्नाकर ब्रज भाषा के काव्य की परम्परा के कवि हैं, लेकिन वे रीतिकालीन कवियों से स्पष्टतः भिन्न हैं। आज का मुक्तक काव्य भक्तिकाल के मुक्तक काव्य जैसा नहीं है। यह सब युग चेतना का प्रभाव है। इसलिए टैन ने जाति, परिवृत्ति और युग चेतना को साहित्य की प्रमुख प्रेरणाएँ स्वीकार किया है। इसका मतलब यह हुआ कि कोई भी साहित्यिक रचना अपने युग, परिवृत्ति और जातीयता से अलग करके नहीं देखी जा सकती। हडसन ने इसी प्रेरणा शक्ति को जाति और युग के नाम से दो प्रमुख रूपों में विभक्त किया है। वे लिखते हैं -

"A nation's literature is not a miscellaneous collection of books which happend to have been written in the same tongue or within a certain geographical area. It is the progressive realtion age by age of such nations and character.

टैने साहित्य को ऐतिहासिक आलोचना से मिलाकर इस पर विचार करते हुए लिखते हैं कि रचना का वर्ण्य विषय भाव, भाषा-शैली, विचारधारा, आदि सभी कुछ उस युग की देन होता है। वे कहते हैं -

"It was precieved that a work of literature is not a more play of imagination, a solitary caprice of a heated brain, but a transcript of contemporary manners, a type of a certain kind of mind."

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book